मुख्यमंत्री अरबिंद केजरीवाल की गिरफ्तारी पर उठ रहे सबाल...
आखिरकार दिल्ली के मुख्यमंत्री एवं आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल गिरफ्तार कर लिए गए। वह बतौर मुख्यमंत्री गिरफ्तार होने वाले पहले नेता हैं। उनकी गिरफ्तारी इसलिए अधिक चकित करती है, क्योंकि उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ अलख जगाकर यह कहते हुए राजनीति में कदम रखा था कि वह नई तरह की राजनीति करेंगे। शराब घोटाले में अपनी गिरफ्तारी के लिए एक हद तक केजरीवाल स्वयं भी उत्तरदायी हैं। उन्होंने प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी की ओर से दिए गए एक के बाद एक नौ समन की अनदेखी की और वह भी बिना किसी ठोस आधार के। दिल्ली में नई शराब नीति बनाकर घोटाले को अंजाम देने के आरोपों का सामना कर रहे अरविंद केजरीवाल और उनके सहयोगी अपनी सफाई में कुछ भी कहें, इस नीति को लेकर तब संदेह गहराया गया था, जब घोटाले का शोर उठते ही उसे वापस ले लिया गया था और वह भी तब, जब यह दावा किया गया था कि यह देश की सर्वश्रेष्ठ शराब नीति है। शराब घोटाले में अब तक केजरीवाल के अतिरिक्त दिल्ली के उपमुख्यमंत्री रहे मनीष सिसोदिया और सांसद संजय सिंह गिरफ्तार हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त घोटाले में शामिल बताए जा रहे दिल्ली सरकार के अधिकारी और शराब कारोबारी भी गिरफ्तार हुए हैं। इसी मामले में भारत राष्ट्र समिति की नेता के. कविता भी गिरफ्तार हो चुकी हैं।
पता नहीं शराब घोटाले का सच क्या है, लेकिन इस तथ्य को ओझल नहीं किया जा सकता कि गिरफ्तार लोगों को जमानत नहीं मिली है। केजरीवाल को भी नहीं मिली और मनीष सिसोदिया तो करीब एक वर्ष से जेल में हैं। एक तथ्य यह भी है कि नई शराब नीति के जरिये शराब कारोबारियों को अनुचित लाभ पहुंचाने और घोटाला किए जाने की बात खुद दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव ने कही थी। इसी के बाद इस मामले की सीबीआइ जांच शुरू हुई, जिसमें बाद में प्रवर्तन निदेशालय ने भी दखल दिया। शराब घोटाले में अभी तक जो लोग भी गिरफ्तार किए गए हैं, वे धन शोधन निवारण अधिनियम यानी पीएमएलए के तहत गिरफ्तार किए गए हैं। इस अधिनियम के प्रविधान अत्यंत कठोर हैं। इस अधिनियम के तहत गिरफ्तार लोगों को आसानी से जमानत नहीं मिलती। इसी कारण यह आरोप लगता रहता है कि इस अधिनियम के जरिये राजनीतिक विरोधियों का उत्पीड़न किया जाता है। इस पर आश्चर्य नहीं कि केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद ऐसे आरोप आम आदमी पार्टी के साथ-साथ अन्य विपक्षी नेताओं की ओर से भी लगाए जा रहे हैं। भले ही सरकार और ईडी के पास इन आरोपों के संबंध में बहुत कुछ कहने को हो, लेकिन इस केंद्रीय जांच एजेंसी को दिल्ली के शराब घोटाले के साथ अन्य अनेक घोटालों की जांच को यथाशीघ्र अंजाम तक पहुंचाना चाहिए। वास्तव में ऐसा करके ही उन आरोपों से बचा जा सकता है कि मोदी सरकार राजनीतिक कारणों से प्रवर्तन निदेशालय का दुरुपयोग करने में लगी हुई है।